Varuthini Ekadashi – वरुथिनी एकादशी
हिन्दू धर्म में वरुथिनी एकादशी का व्रत सुख और सौभाग्य का प्रतीक है। वरुथिनी एकादशी वैशाख मास के कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी वरूथिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। यह व्रत सुख सौभाग्य का प्रतीक है। इस भक्तिभाव से भगवान मधुसुदन की पूजा करनी चाहिए। सूर्य ग्रहण के समय जो फल स्वर्ण दान करने से प्राप्त होता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख भोगता है।इस दिन जरुरतमंद को दान देने से करोडों वर्ष तक ध्यान मग्न होकर तपस्या करने तथा कन्यादान के भी फलों से बढकर वरूथिनी एकादशी व्रत के फल कहे गये है।
Varuthini Ekadashi Tithi & Muhurt – वरुथिनी एकादशी तिथि &मुहूर्त
तिथि – शनिवार 4 मई 2024
वरूथिनी एकादशी पूजा समय मुहूर्त –
एकादशी तिथि शुरू – 11:25 – 3 मई 2024
एकादशी तिथि ख़त्म – 8 :40 – 4 मई 2024
Varuthini Ekadashi Vrat Ka Mahatv-वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यता है कि ब्राह्मण को दान देने, करोड़ो वर्ष तक ध्यान करने और कन्या दान से मिलने वाले फल से भी बढ़कर है वरुथिनी एकादशी का व्रत। इस व्रत को करने से भगवान मधुसुदन की कृपा होती है। मनुष्य के दुख दूर होते हैं और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
Varuthini Ekadashi Vrat Puja Vidhi-वरुथिनी एकादशी व्रत पूजा विधि
वरुथिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के साथ साफ कपड़े पहन कर लें। इसके बाद मंदिर की अच्छी तरह से सफाई करे फिर देवी-देवताओं को स्नान कराने के बाद साफ कपड़े पहनाएं और मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें। इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी दल को जरूर शामिल करें। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है-
- व्रत से एक दिन पूर्व यानि दशमी को एक ही बार भोजन करना चाहिए।
- व्रत वाले दिन प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान की पूजा करनी चाहिए।
- व्रत की अवधि में तेल से बना भोजन, दूसरे का अन्न, शहद, चना, मसूर की दाल, कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। व्रती को सिर्फ एक ही बार भोजन करना चाहिए।
- रात्रि में भगवान का स्मरण करते हुए जागरण करें और अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करना चाहिए।
व्रत वाले दिन शास्त्र चिंतन और भजन-कीर्तन करना चाहिए और झूठ बोलने व क्रोध करने से बचना चाहिए।
Varuthini Ekadashi Pauranik Katha -वरुथिनी एकादशी पौराणिक कथा
एक समय अर्जुन के आग्रह करने पर भगवान श्री कृष्ण ने वरुथिनी एकादशी की कथा और उसके महत्व का वर्णन किया, जो इस प्रकार है-
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा का राज्य था। वह अत्यन्त दानशील और तपस्वी राजा था। एक समय जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था। उसी समय जंगली भालू आकर उसका पैर चबाने लगा। इसके बाद भालू राजा को घसीट कर वन में ले गया। तब राजा घबराया, तपस्या धर्म का पालन करते हुए उसने क्रोध न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की।
राजा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए़ और चक्र से भालू का वध कर दिया। तब तक भालू राजा का एक पैर खा चुका था। इससे राजा मान्धाता बहुत दुखी थे। भगवान श्री विष्णु ने राजा की पीड़ा को देखकर कहा कि- ‘’मथुरा जाकर तुम मेरी वाराह अवतार मूर्ति की पूजा और वरूथिनी एकादशी का व्रत करो, इसके प्रभाव से भालू ने तुम्हारा जो अंग काटा है, वह अंग ठीक हो जायेगा। तुम्हारा यह पैर पूर्वजन्म के अपराध के कारण हुआ है।’’ भगवान विष्णु की आज्ञा अनुसार राजा ने इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ किया और वह फिर से सुन्दर अंग वाला हो गया।