जाने उत्पन्ना एकादशी का महत्व, पूजा विधि-Importance of Utpanna Ekadashi, method of worship
उत्पन्ना एकादशी-Utpanna Ekadashi
उत्पन्ना एकादशी एक हिन्दू पर्व है जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। यह पर्व भगवान विष्णु के आराधना के रूप में मनाया जाता है और इसका मतलब होता है “उत्पन्न होने वाली एकादशी”। इस एकादशी का व्रत बड़े धार्मिक महत्व से माना जाता है और इसे भक्ति और पूजा के साथ मनाया जाता है।
उत्पन्ना एकादशी का व्रत एक रात्रि और दो दिन के अंदर मनाया जाता है। व्रती लोग इस दिन बिना अनाज और दाल के खाने का पालन करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। उन्हें रात्रि के समय जगाना भी आदर्श माना जाता है।
उत्पन्ना एकादशी के माध्यम से भक्त अपने पापों का क्षय करते हैं और मोक्ष की प्राप्ति की आकांक्षा करते हैं। यह पर्व हिन्दू धर्म में बड़े आनंद और आत्मा की शुद्धि की भावना के साथ मनाया जाता है।
उत्पन्ना एकादशी शुभ तिथि, मुहूर्त एवं पारण-Utpana Ekadashi auspicious date, auspicious time and Parana 2024
उत्पन्ना एकादशी मंगलवार 26, नवम्बर 2024 को है।
एकादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 26, 2024 को 01:02 AM बजे ।
एकादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 27, 2024 को 03:48 AM बजे ।
उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधिःWorship method of Utpanna Ekadashi
इस दिन व्रत करने वाले को प्रातः काल स्नान आदि करके निवृत्त हो जाना चाहिए तत्पस्चात घर के मंदिर में दीपक जलाकर व्रत का संकल्प करना चाहिए। उसके बाद भगवान विष्णु को गंगाजल से अभिषेक कराएं। सब भगवान पुष्प, फूलों की माला तथा तुलसी का पत्ता अर्पित करें। यदि सम्भव हो तो इस दिन निराहर रहकर पुरे दिन प्रत भी रखें।
उत्पन्ना एकादशी के महत्व:Importance of Utpanna Ekadashi
उत्पन्ना एकादशी का महत्व हिन्दू धर्म में बहुत अधिक माना जाता है और इसे भगवान विष्णु की पूजा और व्रत के रूप में मनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं जिनके कारण उत्पन्ना एकादशी को महत्वपूर्ण माना जाता है:
- पापों का क्षय: उत्पन्ना एकादशी के व्रत को मनाने से, व्रती व्यक्ति के पापों का क्षय होता है और वह अपने कर्मों के द्वारा उच्च आत्मा की ओर बढ़ता है।
- आत्मा की शुद्धि: उत्पन्ना एकादशी के व्रत से व्रती की आत्मा की शुद्धि होती है और वह भगवान की आराधना के माध्यम से आत्मा को पवित्र बनाता है।
- भगवान विष्णु की कृपा: उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्रती को भगवान की कृपा मिलती है और उसके दुःखों का निवारण होता है।
- सात्विक जीवन: उत्पन्ना एकादशी के व्रत का पालन करने से व्रती के जीवन में सात्विकता और धार्मिकता का विकास होता है, जिससे उसका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है।
- सामाजिक सांविधानिकता: उत्पन्ना एकादशी का व्रत सामाजिक सांविधानिकता को बढ़ावा देता है, क्योंकि इसे समाज में मिलकर मनाने का परंपरागत तरीका होता है।
- संयम और साधना: इस व्रत के द्वारा व्रती को संयम और साधना की प्राप्ति होती है, जो उसके जीवन में आत्मा के विकास के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।
उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक कथाःMythological story of Utpana Ekadashi
उत्पन्ना एकादशी की कथा बहुत ही प्रचलित है तथा पद्म पुराण में इसकी विस्तृत जानकारी मिलती है। एक बार की बात है धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान विष्णु से एकादशी व्रत की कथा जानने की बेहद उत्सुकता दिखाई तब श्री कृष्ण ने धर्मराज को यह कथा बताई।
एक बार की बात है सतयुग में मुर नामक एक राक्षस था उसने सभी स्वर्ग देवताओं को पराजित करके स्वर्ग पर अपना अधिकार जमा लिया। जिसके कारण तीनों लोको में हाहाकर मच गया और सभी देवता और ऋषिगण अपनी समस्या लेकर भगवान शिव के पास पहुंचे तब भगवान शिव ने कहा इस समस्या का समाधान भगवान श्री विष्णु के पास ही मिलेगा। अतः आप सभी उनके पास जाएं उसके बाद सभी सभी देवता भगवान श्री विष्णु जी के पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण घटना के बारे में बताया। कालांतर में भगवान श्री हरि ने असुर मुर के सैकड़ों सेनापतियों का युद्ध करके विश्राम करने के लिए बद्रीकाश्रम चले गए थें। सेनापतियों के वध का समाचार सुनकर वह क्रोधित हो गया और बद्रीकाश्रम में पहुंच गया।
उसी समय भगवान विष्णु के शरीर से एक कन्या का युद्ध हुआ। कन्या और असुर मुर के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमें मुर का वध हुआ। जब भगवान विष्णु अपनी निद्रावस्था से जागृत हुए तो उस कन्या के कार्यों की प्रशंसा सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और उस कन्या का नाम एकादशी रखा और एकादशी तिथि को अतिप्रिय बताया। तब सभी देवताओं ने एकादशी की वंदना की और उनका मान-सम्मान भी किया। इस प्रकार कालांतर से ही एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है।