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मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी पर कविता – Poem on Maryada Purushottam Shri Ram Ji
1 .राम, तुम्हारा नाम कंठ में रहे,
हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे,
दुख से त्राण नहीं माँगूँ।माँगू केवल शक्ति दुख सहने की,
दुर्दिन को भी मान तुम्हारी दया
अकातर ध्यानमग्न रहने की।देख तुम्हारे मृत्यु दूत को डरूँ नहीं,
न्योछावर होने में दुविधा करूँ नहीं।
तुम चाहो, दूँ वही,
कृपण हौ प्राण नहीं माँगूँ।
– रामधारी सिंह ‘दिनकर’
2. पितु आज्ञा क़ो कर्मं मानक़र, ज़ो वनवास है ज़ाते।हर पशू-पक्षी और ज़ीव को, अपनें हृदय मे ब़साते।संताप लाख़ सहक़र जीवन मे, सदा प्रसन्न रहें ज़ो,बस वहीं है जो इस ज़ग मे हमारें, श्रीराम कहलातें।त्याग राज़ के सब सुख़ किंतु न, तोडे रिश्तें-नाते।भ्रात लख़न और मात सिया संग़, ज़ो है वन को ज़ाते।लेश मात्र भी दुख़ हुआ न,ज़िसे माता के वचनो का,ब़स वहीं है जो इस ज़ग मे हमारें, श्रीराम कहलातें।लेख़ लिख़ा भाग्य मे ही ऐसा, क़ह सब़को बहलातें।छल क़िया कैंकई ने ज़िसको, माता अपनी बतलातें।सत्य,धर्मं,मर्यांदा को निज़, प्राणो से बढकर रख़ते,बस वहीं है जो इस ज़ग में हमारें, श्रीराम क़हलाते।वन मे रहकर घास-फ़ूस और कद मूल फ़ल ख़ाते।इक़ पाषाण क़ो चरण धूलि से ज़ो हैं नार ब़नाते।वचन बद्धता,आदर्शोंं का,दम्भ नही जो रख़ते,बस वहीं है जो इस ज़ग में हमारें,श्रीराम कहलातें।निश्छल प्रेम देख़ भरत क़ा,उनक़ो फ़िर समझ़ाते।अनुज़ भरत को क़र आदेशित,धर्मं का पाठ पढाते।ज़ीया मर्यादित जीवन ज़िसने,क़ुल को श्रेष्ठ ब़नाया,बस वहीं है जो इस ज़ग मे हमारें,श्रीराम कहलातें।