दुर्गा महा नवमी पूजा की तारीख और मुहूर्त-Durga Maha Navamee Pooja Kee Tithi Aur Muhoort
दुर्गा महा नवमी पूजा-Durga Maha Navamee Pooja
हिन्दू धर्म में दुर्गा पूजा का विशेष महत्व होता है। दुर्गा पूजा का अंतिम दिन महानवमी कहलाता है। इसे दुर्गा महानवमी भी कहते हैं। इस दिन पूरे देश में माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की जाती है। इस दिन देवी की पूरी विधि विधान से पूजा करते करते हैं और उपवास रखते हैं। दुर्गा महा नवमी के दिन कई तरह की परम्पराएं निभाई जाती हैं। महानवमी दुर्गा पूजा का तीसरा और अंतिम दिन होता है। इस दिन की शुरुआत भी महास्नान और षोडशोपचार पूजा से होती है। महानवमी पर देवी दुर्गा की आराधना महिषासुर मर्दिनी के तौर पर की जाती है। इसका मतलब है असुर महिषासुर का नाश करने वाली। मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था।
महा नवमी की पूर्व संध्या पर, मां दुर्गा की प्रार्थना की जाती है और महिषासुरमरर्दिनी, भैंस रूपी राक्षस महिषासुर की विनाशक, के रूप में पूजा की जाती है। मान्यताओं के मुताबिक, महा नवमी के शुभ दिन पर, देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया और पृथ्वी पर शांति वापस बहाल की।
दुर्गा महा नवमी तिथि 2024 और मुहूर्त-Durga Maha Navamee Tithi Aur Muhoort
तिथि :11अक्टूबर, 2024 शुक्रवार
मुहूर्त:
अक्टूबर 11, 2024 को 12:07 से नवमी आरम्भ
अक्टूबर 12, 2024 को 11:1 पर नवमी समाप्त
दुर्गा महानवमी नवमी क्यों मनाई जाती है?Durga Mahaa Navamee Kyon Manaee Jaatee Hai?
पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नाम का राक्षस था। महिषासुर को ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान प्राप्त हुआ था। इसी कारण महिषासुर ने देवताओं को परेशान कर रखा था। सभी देवता परेशान होकर ब्रह्मा, शिव जी और भगवान विष्णु के पास गए। यह सब सुनकर तीनों देवता ने एक आदि शक्ति की रचना की। विष्णु जी के क्रोध और अन्य देवताओं के आवाहन करने से माँ दुर्गा प्रकट हुई। इसके पश्चात देवी देवताओं ने उन्हें शक्ति और अस्त्र दिए। फिर माँ दुर्गा ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। महिषासुर और माँ दुर्गा के बीच का युद्ध नौ दिन तक चला था और नौवे दिन दुर्गा जी ने महिषासुर ने अंत किया था। इसी कारण इस दिन महानवमी के रूप में जाना जाता है।
दुर्गा महा नवमी पूजा विधि-Durga Maha Navamee Pooja Vidhi
- इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र को धारण करना चाहिए।
- दुर्गा नवमी के दिन दुर्गा के रूप मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
- इस दिन माँ को प्रसाद के रूप में नौ प्रकार के फल-फूल और नवरस से बना भोजन का भोग लगाना चाहिए।
- इसके पश्चात धूप, दीपक या अगरबत्ती माँ की आरती करनी चाहिए।
- साथ ही साथ इस दिन दुर्गा नवमी मंत्र और नवम सिद्धिदात्री मंत्र का जाप करना चाहिए।
- मान्यताओं के अनुसार दुर्गा जी के इस रूप की विधि विधान से पूजा करने पर सिद्धि प्राप्त होती है।
कब मनाई जाती है महानवमी-Kab Manaee Jaatee Hai Mahaanavamee
● यदि नवमी तिथि अष्टमी के दिन ही प्रारंभ हो जाती है तो नवमी पूजा और उपवास अष्टमी को ही किया जाता है।
● शास्त्रों के अनुसार यदि अष्टमी के दिन सांयकाल से पहले अष्टमी और नवमी तिथि का विलय हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में अष्टमी पूजा, नवमी पूजा और संधि पूजा उसी दिन करने का विधान है।
दुर्गा बलिदान-Durga Balidan
दुर्गा बलिदान में देवी शक्ति को बलि चढ़ाने की परंपरा है। हालांकि जो लोग बलि की प्रथा को सही नहीं मानते हैं वे प्रतीकात्मक तौर पर फल या सब्जी जैसे केला, कद्दू और ककड़ी की बलि चढ़ा सकते हैं। भारत के ज्यादातर इलाकों और समुदाय में पशु बलि प्रतिबंधित है।
पश्चिम बंगाल के वैल्लूर मठ में नवमी पूजा के दिन प्रतीक के तौर पर कद्दू और गन्ने की बलि चढ़ाई जाती है। दुर्गा बलिदान के लिए सफेद कद्दू का उपयोग करना कूष्माण्ड के तौर पर जाना जाता है। ध्यान रहे कि दुर्गा बलिदान की परंपरा हमेशा उदयव्यापिनी नवमी तिथि को ही करना चाहिए। निर्णय सिंधु के अनुसार नवमी के दिन अपराह्न काल में दुर्गा बलिदान किया जाना चाहिए।
महा नवमी हवन-Maha Navami Havan
महानवमी के दिन नवमी हवन का बड़ा महत्व है। यह हवन नवमी पूजा के बाद किया जाता है। नवमी हवन को चंडी होम भी कहा जाता है। मां दुर्गा के भक्त नवमी हवन आयोजित कर देवी शक्ति से बेहतर स्वास्थ और समृद्धि की कामना करते हैं।ध्यान रहे कि नवमी का हवन हमेशा दोपहर के समय किया जाना चाहिए। हवन के दौरान प्रत्येक आहुति पर दुर्गा सप्तशी के 700 मंत्रों का पाठ करना चाहिए।