छठ पूजा कब है जानिए तिथि मुहूर्त पौराणिक कथा-Chhath Pooja Kab Hai jaanie Tithi Muhoort Pauraanik Katha
छठ पूजा-Chhath Pooja
छठ पूजा एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है, जो प्रायः उत्तर भारत के क्षेत्रों, विशेषकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और नेपाल में मनाया जाता है। यह पूजा सूर्य और छठी माँ (छठी देवी) की पूजा के रूप में मनाई जाती है। छठ पूजा बिहारवासियों के लिए विशेष महत्व रखता है और इस दिन भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए पूजा की जाती है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, छठ पूजा को कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि तक किया जाता है। ग्रेगोरिन कलेंडर के अनुसार, छठ पूजा सामान्यरूप से हर साल अक्टूबर या नवंबर के महीने में आता है। इस पर्व को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।
छठ पूजा 2024 की तिथि और मुहूर्त-Chhath Pooja 2024 Kee Tithi Aur Muhoort
छठ पूजा मुहुर्त
नहाय खाय –5 नवम्बर,मंगलवार 2024
खरना – 6 नवम्बर ,बुधवार 2024
छठ पूजा – 7 नवम्बर, गुरूवार 2024
पारण का दिन – 8 नवम्बर , शुक्रवार 2024
संध्या अर्घ्य- 7 नवम्बर , शाम 5:33 मिनट।
उगते हुए सूर्य को अर्घ्य – 8 नवम्बर , सुबह 5:33 मिनट।
शुक्रवार, 08 नवंबर, 2024 – सूर्योदय का समय – सुबह 06 बजकर 37 मिनट पर
छठ पूजा के त्यौहार को चार दिन तक मनाया जाता है और इस दौरान महिलाओं द्वारा 36 घंटों का उपवास किया जाता है। छठ पूजा के प्रत्येक दिन का अपना महत्व हैं जो इस प्रकार है:
नहाय खाये-Nahaay Khaaye
नहाय खाये छठ पूजा का प्रथम दिन होता है। इस दिन स्नान करने के बाद घर की साफ-सफाई की जाती है और शाकाहारी भोजन का सेवन किया जाता है।
खरना-Kharna
छठ पूजा का दूसरा दिन होता है खरना। इस दिन व्रतधारी द्वारा निर्जला व्रत का पालन किया जाता है। संध्याकाल में भक्तजन गुड़ की खीर, घी की रोटी और फलों का सेवन करते हैं, साथ ही परिवार के सदस्यों को इसे प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
संध्या अर्घ्य-Sandhya Arghy
छठ पर्व के तीसरे दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। सूर्य देव को अर्घ्य के समय जल और दूध अर्पित किया जाता है और छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। सूर्य देव की आराधना के पश्चात रात में छठी मैया की व्रत कथा सुनी जाती है।
उषा अर्घ्य-Usha Arghy
छठ पूजा के अंतिम दिन प्रातःकाल में सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन भक्त सूर्योदय से पूर्व नदी के घाट पर पहुंचकर उदित होते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद छठ मैया से संतान की रक्षा और परिवार की सुख-शांति की कामना की जाती है। इस पूजा के उपरांत व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर और प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं, जिसे पारण या परना कहते है।
छठ व्रत की पूजा विधि-Chhath Vrat Kee Pooja Vidhi
छठ पर्व से दो दिन पहले चतुर्थी के दिन स्नानादि करके भोजन किया जाता है। पंचमी को उपवास करके संध्याकाल में किसी तालाब या नदी में स्नान करके सूर्य भगवान को अर्ध्य दिया जाता है। तत्पश्चात पारण किया जाता है। पूरा दिन बिना जल पिये नदी या तालाब पर जाकर स्नान किया जाता है और सूर्यदेव को अर्ध्य दिया जाता है।
- छठ पूजा का व्रत करने वाले जातक को स्वच्छता और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- छठ पूजा के दौरान होने वाले अनुष्ठान केवन विवाहित महिला द्वारा किए जा सकते हैं।
- इस दौरान परिवार के पुरुषों और स्त्रियों के लिए रात्रि के समय फर्श पर सोने का भी नियम है।
- छठ पूजा के प्रसाद का प्रयोग करने से पहले बर्तनों को भली प्रकार से साफ करना चाहिए।
- साफ-सफाई का ध्यान रखते हुए छठ पूजा के दौरान घर के भीतर एक अस्थायी रसोई का निर्माण किया जाता है।
- छठ पूजा के दौरान घर पर थेकुआ नामक मिठाई बनाई जाती है।
- विवाहित स्त्रियों को विशेष धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करना होता है जैसे, इस दौरान वे स्वयं द्वारा पकाया गया भोजन ग्रहण नहीं कर सकती हैं और सिलाई किये हुए कपड़े भी धारण नहीं कर सकती हैं।
छठ पूजा की पौराणिक कथा -Story of Chhath Puja
प्राचीन काल से ही छठ पूजा का विशेष महत्व रहा है। इसका आरंभ महाभारत काल में कुंती ने किया था। सूर्य की आराधना से ही कुंती को पुत्र कर्ण की प्राप्ति हुई थी। इसके बाद कुंती पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की, वह भगवान सूर्य का परम भक्त था, प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा पाकर ही वह आगे चलकर महान योद्धा बना। इसलिए आज भी छठ पूजा में अर्घ्य दान की पद्धति प्रचलित है।
वहीं दूसरी ओर पांडवों की पत्नी द्रौपदी को भी नित्य सूर्य की पूजा करने के लिए जाना जाता है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य देव की पूजा किया करती थी। जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था। इस छठ के व्रत से द्रौपदी की सभी मनोकामनाएं पूरी हुईं साथ ही पांडवों को राजपाट भी वापस मिल गया।
दरअसल, कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाले छठ पर्व पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्ति के लिए प्रसिद्ध है। छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना कि जाती है तथा गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न की जाती है।
छठ पूजा का आरंभ कार्तिक माह की शुक्ल चतुर्थी व समापन सप्तमी को होता है। पहले दिन ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना किया जाता है, पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखने वाले व्रती शाम के समय गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन प्रसाद रूप में करते हैं। लेकिन व्रत रखने वाला व्रत समाप्त होने के बाद ही अन्न और जल ग्रहण करते हैं।