कल्परम्भ 2024 – Kalprambh 2024
नवरात्रि के समय देवी के नौ रूपों की पूजा होती है। दुर्गा पूजा की विधिवत शुरुआत षष्ठी से प्रारंभ होती है। मान्यता है कि देवी दुर्गा इस दिन धरती पर आई थीं। षष्ठी के दिन बिल्व निमंत्रण पूजन, कल्परंभ, अकाल बोधन, आमंत्रण और अधिवास की परंपरा है। यही कारण है कि इस दिन काल प्रारंभ कि परंपरा निभाई जाती है।
कल्परम्भ तिथि और शुभमुहूर्त- Kalprambh Tithi Aur Subhmuhurt
10अक्टूबर, 2024 गुरुवार
अक्टूबर 10, 2024 को 01 :34 :50 से षष्ठी आरम्भ
अक्टूबर 10, 2024 को 23 :27 :51 पर षष्ठी समाप्त
बोधन:Bodhan
ऐसा माना जाता है कि सभी देवी देवता एवं मां दुर्गा दक्षिणायन काल से ही नींद में चले जाते हैं। ऐसे में हिंदू धर्म के मान्यता अनुसार बोधन परंपरा के माध्यम से उन्हें नींद से जगाया जाता है। बोधन परंपरा जिसका अर्थ होता है कि मां दुर्गा को नींद से जगाना। बोधन के इस कार्य को हिन्दू धर्म में अकाल बोधन के नाम से भी जाना जाता है। बोधन के पश्चात देवी देवताओं की आमन्त्रण की परंपरा निभाई जाती है। देवी दुर्गा की आरती और वंदना भी की जाती है। बोधन की परम्परा सूरज ढलने के बाद की जाती है। यह प्रक्रिया नव दिनों तक चलती है। इसके उपरांत हिन्दू ग्रंथो के अनुसार द्वादश के दिन रावण दहन का भी नियम माना जाता है।
काल प्रारंभ:Kalparambh
काल प्रारंभ की क्रिया प्रात: काल की जाती है। इस दौरान घट या कलश में जल भरकर देवी दुर्गा को समर्पित करते हुए इसकी स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद महासप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी तीनों दिन मां दुर्गा की विधिवत पूजा-आराधना का संकल्प लिया जाता है।
काल प्रारंभ पूजा की विधि: Kalparambh Puja Ki Vidhi
कल्परम्भ या जिसे हम काल प्रारम्भ भी कहते है। इसकी क्रिया प्रातः काल में की जाने वाली विधि बताया गया है। सनातन धर्म और वेद के अनुसार प्रात काल जल भरकर देवी दुर्गा को समर्पित किया जाता है। जल समर्पित करने के उपरांत महा सप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी, इन तीनों दिन माँ दुर्गा की विधि अनुसार पूजा अर्चना, आराधना आदि का संकल्प लिया जाता है।
बोधन पूजा की विधि:Bodhan puja ki vidhi
एक कलश में जल भरकर किसी पात्र में रखा जाता है। फिर उसे बिल्व के पेड़ के निचे रखा जाता है। शिव पूजन में बिल्व पात्र बेहद मान्य होता है। इसके उपरांत बोधन की क्रिया में माँ दुर्गा की नींद से जगाने के लिए प्रार्थना की जाती है।
बोधन के उपरांत अधिवास और आमंत्रण की परम्परा निभाई जाती है। माँ दुर्गा की पूजा में माँ दुर्गा को आमंत्रण करने की विधि माना गया है। कहते है माँ दुर्गा को अपने घर आने का निमंत्रण दिया जाता है। उसके उपरांत माँ दुर्गा की स्थापना कर दी जाती है।