गोवर्धन पूजा:Govardhan Puja
हिन्दू धर्म में गोवर्धन पूजा करना बेहद ही शुभ माना जाता है, क्योंकि इस पर्व का सीधा संबंध प्रकृति और मानव से होता है। हिंदू पंचांग में, गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का त्यौहार कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानि दिवाली के दूसरे दिन भक्ति-भाव से मनाया जाता है। यह त्यौहार पूरे भारत में धूम-धाम से मनाया जाता है। लेकिन उत्तर भारत में खासकर ब्रज भूमि (मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, गोकुल, बरसाना आदि) पर इसकी भव्यता देखने लायक होती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा भी की जाती है, क्योंकि उन्होंने गोकुल के लोगों को गोवर्धन पूजा के लिए प्रेरित किया था और देवराज इंद्र के अहंकार को खत्म किया था।
दिवाली के ठीक एक दिन बाद गोवर्धन पूजा भारत के प्रमुख हिस्सों में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। जहां 5 दिवसीय उत्सव के पहले तीन दिन धन, समृद्धि और कल्याण के लिए प्रार्थना की जाती है। चौथे दिन यानी गोवर्धन पूजा देवताओं को उनके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है।
गोवर्धन पूजा 2024 तिथि और समय-Govardhan Puja Date and Time
गोवर्धन पूजा 2023 2 नवंबर 2024 ,शनिवार
गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त – 06:36 AMसे 08:50 AM
अवधि – 02 घण्टे 11 मिनट
गोवर्धन पूजा सायाह्नकाल मुहूर्त – 03:31 PM से 05:42 PM
अवधि – 02 घण्टे 13 मिनट
प्रतिपदा तिथि का प्रारम्भ –नवम्बर 01, 2024 को 06:16PM
प्रतिपदा तिथि समाप्त – नवम्बर 02, 2024 को 08:21PM
गोवर्धन पूजा का महत्व:Significance of Govardhan Puja
दिवाली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा का शुभ त्योहार भगवान कृष्ण की लीला को याद करने के लिए मनाया जाता है। क्योंकि भगवान कृष्ण ने इस दिन अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर और ग्रामीणों और जानवरों को भगवान इंद्र के क्रोध से बचाया था। साथ ही उन्हें पराजित कर उन्हें उनकी गलती का एहसास करवाया था। इसलिए दिवाली के अगले दिन पूजा की जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भक्त कार्तिक महीने में प्रतिपदा तिथि, शुक्ल पक्ष के दिन यह त्योहार मनाया जाता है। इसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। भगवान कृष्ण के उपासक उन्हें गेहूं, चावल, बेसन से बनी सब्जी और पत्तेदार सब्जियां चढ़ाते हैं।
अन्नकूट पूजा:Annakoot Puja
यह त्यौहार भगवान कृष्ण की इंद्र पर विजय की स्मृति में और गोवर्धन पर्वत को आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। गोवर्धन पर्वत को भगवान कृष्ण का रूप माना जाता है और यह त्यौहार उनकी दिव्य शक्ति और कृपा का प्रतीक है। अन्नकूट का अर्थ होता है अन्न का ढेर और हिंदू धर्म में इसे बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है। एक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने वृंदावन के लोगों को भगवान इंद्र की पूजा न करने और गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की सलाह दी थी। जिसपर इंद्रदेव काफी क्रोधित हुए और वृंदावन के लोगों पर वज्रपात किया। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी सबसे छोटी उंगली से गोवर्धन पर्वत को उठाकर गांव के सभी लोगों को आश्रय प्रदान किया था।
इसके बाद से ही भक्त कई सारे भोजन को प्रसाद के रूप में तैयार करते हैं, जो गोवर्धन पर्वत का प्रतिनिधित्व करता है। प्रसाद में विभिन्न प्रकार के शाकाहारी खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं, जैसे चावल, सब्जियां, मिठाई और फल। भक्त इन खाद्य पदार्थों को भगवान कृष्ण को अर्पित करते हैं और फिर उपस्थित सभी को प्रसाद के रूप में वितरित करते हैं।
गोवर्धन पूजा विधि:Govardhan puja method
गोवर्धन पूजा समारोह कई अनुष्ठानों और परंपराओं से जुड़ा हुआ है। पूजा भक्तों के द्वारा एक पहाड़ी के रूप में गाय के गोबर के ढेर बनाने के साथ शुरू होती है, जो गोवर्धन पर्वत का प्रतिनिधित्व करती है और इसे फूलों और कुमकुम से सजाया जाता है। इसके बाद भक्त गाय के गोबर की पहाड़ियों के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और अपने परिवार की सुरक्षा और खुशी के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गोवर्धन पूजा विधि में लोग अपनी गायों या बैल को स्नान कराते हैं और केसर और माला से उनकी पूजा करते हैं। अन्नकूट पूजा भी गोवर्धन पूजा का एक अभिन्न अंग है, जहां भगवान कृष्ण को छप्पन भोग लगाया जाता है, गोवर्धन आरती की जाती है, जिसके बाद इस ‘अन्नकूट प्रसाद’ साझा किया जाता है।
गोवर्धन पूजा में कृष्ण की आराधना:Worship of Krishna in Govardhan Puja
ब्रज के लोगों को भगवान श्री कृष्ण ने अन्न से भरपूर पर्वत प्रदान किया। इसीलिए इस दिन सभी भक्त भगवान कृष्ण की आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। इस पूजा में भोजन की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके अलावा, भगवान कृष्ण के उपासक इस पर्व पर भजन, कीर्तन, करने के साथ-साथ ढेर सारे दिये भी जलाते हैं और अपने घरों की साफ-सफाई कर उसे सजाते भी हैं। अन्नकूट दिवाली के चौथे दिन मनाया जाता है। विक्रम संवत कैलेंडर में दिवाली का चौथा दिन नए साल के पहले दिन के रूप मे मनाया जाता है। यह त्योहार पूरे भारत और विदेशों में अधिकांश हिंदू संप्रदायों द्वारा मनाया जाता है।