दुर्गा विसर्जन की तिथि व मुहूर्त:Durga immersion date and auspicious time
ऐसी मान्यता है कि इस दिन माँ दुर्गा अपने आध्यात्मिक निवास कैलाश पर्वत पर वापस लौटती हैं। दुर्गा पूजा उत्सव का समापन दुर्गा विर्सजन के साथ होता है।दुर्गा विसर्जन का मुहूर्त प्रात:काल या अपराह्न काल में विजयादशमी तिथि लगने पर शुरू होता है। इसलिए प्रात: कालया अपराह्न काल में जब विजयादशमी तिथि व्याप्त हो, तब मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाना चाहिए। कई सालों से विसर्जन प्रात:काल मुहूर्त में होता आया है लेकिन यदि श्रवण नक्षत्र और दशमी तिथि अपराह्न काल में एक साथ व्याप्त हो, तो यह समय दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के लिए श्रेष्ठ है। देवी दुर्गा के ज्यादातर भक्त विसर्जन के बाद ही नवरात्रि का व्रत तोड़ते हैं।माँ दुर्गा विसर्जन के बाद विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री राम ने राक्षस राज रावण को मारा था। वहीं माँ दुर्गा ने इस दिन असुर महिषासुर का वध किया था। दशहरा के दिन शमी पूजा, अपराजिता पूजा और सीमा अवलंघन जैसी परंपराएं भी निभाई जाती है।
दुर्गा विसर्जन के दिन भक्त माता के मस्तक पर सिन्दूर लगा कर उनकी पूजा कर माँ दुर्गा की आरती उतारते हैं।
विसर्जन के समय इस बात का ध्यान रहे की किसी नदी या सरोवर में विसर्जन करना बहुत शुभ माना जाता है। माता की मूर्ति, पात्र या जवार को पूरे विश्वास के साथ विसर्जित करें। पूजा के सभी आवश्यक सामानों को भी पवित्र जल में विसर्जित कर देना चाहिए।
इसके पश्चात माँ दुर्गा की प्रतिमा की सज्जा कर एक विशाल जुलूस के साथ विसर्जन के लिए नदी तक ले जाया जाता है।
इस जुलूस में हज़ारो की संख्या में श्रद्धालू परंपरागत गीतों पर नृत्य करते हैं।
भक्त ढोल की धुन पर धुनुची नृत्य करते हैं।
हाथ में धूप, कपूर तथा नारियल की भूसी से भरे मिट्टी के पात्र में धुंआ किया जता है तथा ढाकी की ताल पर नर एवं नारी पारम्परिक नृत्य में सहभागी होते हैं।हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार ये सभी परंपरा अपराह्न काल में मनानी चाहिए।
दुर्गा विसर्जन तिथि 2024-Durga immersion date
शनिवार, अक्टूबर 12, 2024
दुर्गा विसर्जन मुहूर्त – 07:27 to 09:37 प्रातःकाल
दशमी तिथि प्रारम्भ – 12 अक्टूबर, 2024 को 07:28 प्रातःकाल से
दशमी तिथि समाप्त – 13 अक्टूबर, 2024 को 05:38 प्रातःकाल
दुर्गा विसर्जन का महत्व-Importance of Durga Visarjan
दूर्गा विसर्जन का दिन माता की आराधना का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। वैसे तो पूरे देश में ही इसकी धूम देखने को मिलती है, लेकिन पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, बिहार और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में इसकी महिमा बहुत है। यहां बहुत ही उत्साह के साथ इस उत्सव को मनाया जाता है। यह त्योहार माता दुर्गा की प्रतिमा के विसर्जन की प्रथा को दर्शाता है। इस दिन माता की आराधना करने से जीवन के सारे कष्टों का निवारण हो जाता है। आमतौर पर दूर्गा प्रतिमा का विसर्जन सुबह के वक्त किया जाता है, लेकिन शुभ मुहूर्त के चलते शाम के वक्त भी प्रतिमा विसर्जन देखा जा सकता है। मां दूर्गा के उपासक दूर्गा विसर्जन के बाद ही नवरात्रि का उपवास खोलते हैं।
सिंदूर उत्सव-Sindoor Utsav
दुर्गा पूजा के दौरान सिंदूर उत्सव पश्चिम बंगाल में मनाई जाने वाली एक अनोखी परंपरा है। विजयादशमी के दिन दुर्गा विसर्जन से पहले सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है। इस अवसर पर विवाहित महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और शुभकामनाएं देती हैं। सिंदूर उत्सव को सिंदूर खेला भी कहते हैं।