Durga Maha Ashtami Puja दुर्गा महा अष्टमी पूजा 2024

Durga Maha Ashtami Puja
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दुर्गा महा अष्टमी पूजा कब है?When is Durga Maha Ashtami Puja?

दुर्गा महा अष्टमी पूजा-Durga Maha Ashtami Puja

दुर्गा अष्टमी, जिसे महा अष्टमी के रूप में भी जाना जाता है, 11 अक्टूबर, रविवार 2024 को पड़ रही है । दुर्गा पूजा के दूसरे दिन महाष्टमी मनाई जाती है। इसे महा दुर्गाष्टमी भी कहते हैं। महाष्टमी के दिन देवी दुर्गा की पूजा का विधान ठीक महासप्तमी की तरह ही होता है। हालांकि इस दिन प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है। महाष्टमी के दिन महास्नान के बाद मां दुर्गा का षोडशोपचार पूजन किया जाता है।

महाष्टमी के दिन मिट्टी के नौ कलश रखे जाते हैं और देवी दुर्गा के नौ रूपों का ध्यान कर उनका आह्वान किया जाता है। महाष्टमी के दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। यह बंगाली दुर्गा पूजा उत्सव का सबसे शुभ दिन भी है। अष्टमी तिथि के अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि के पहले 24 मिनट के दौरान संधि पूजा की जाती है।

कन्या पूजन:kanya poojan

धार्मिक मान्यता के अनुसार 2 से 10 वर्ष की आयु की कन्या कुमारी पूजा के लिए उपयुक्त होती हैं। कन्या पूजन के दौरान, युवा लड़कियों की पूजा की जाती है और उन्हें छोले, हलवा और पूरी सहित विभिन्न व्यंजन परोसे जाते हैं। इन युवा लड़कियों के पैरों को भी धोया और साफ किया जाता है और यह देवी दुर्गा के प्रति सम्मान दिखाने के लिए एक अनुष्ठान है। युवा लड़कियों के माथे पर तिलक लगाया जाता है और उन्हें उपहार भी दिए जाते हैं। फिर, हर कोई विशेष रूप से महिलाएं इन लड़कियों के पैर छूती हैं, क्योंकि वे देवी दुर्गा और उनके रूपों की अभिव्यक्ति के रूप में पूजनीय हैं।

1. कुमारिका
2. त्रिमूर्ति
3. कल्याणी
4. रोहिणी
5. काली
6. चंडिका
7. शनभावी
8. दुर्गा
9. भद्रा या सुभद्रा

संधि पूजा:Sandhi Pooja

महाअष्टमी पर संधि पूजा होती है। यह पूजा अष्टमी और नवमी दोनों दिन चलती है। संधि पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधि क्षण या काल कहते हैं। संधि काल का समय दुर्गा पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है। क्योंकि यह वह समय होता है जब अष्टमी तिथि समाप्त होती है और नवमी तिथि का आरंभ होता है। मान्यता है कि, इस समय में देवी दुर्गा ने प्रकट होकर असुर चंड और मुंड का वध किया था।

संधि पूजा के समय देवी दुर्गा को पशु बलि चढ़ाई जाने की परंपरा है। हालांकि अब मां के भक्त पशु बलि चढ़ाने की बजाय प्रतीक के तौर पर केला, कद्दू और ककड़ी जैसे फल व सब्जी की बलि चढ़ाते हैं। हिंदू धर्म में अब बहुत से समुदाय में पशु बलि को सही नहीं माना जाता है। पशु हिंसा रोकने के लिए बलि की परंपरा को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। पश्चिम बंगाल के वैल्लूर मठ में संधि पूजा के समय प्रतीक के तौर पर केले की बलि चढ़ाई जाती है। इसके अलावा संधि काल के समय 108 दीपक जलाये जाते हैं।

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