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सिंह संक्रांति ,तिथि, पूजा विधि और महत्व :Singh Sankraanti ,Tithi, Pooja Vidhi Aur Mahatv

सिंह संक्रांति:Singh Sankraanti

नवग्रहों के राजा सूर्य देव माह में एक बार राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्य देव जब भी किसी भी राशि में प्रवेश करते है तो उस दिन को राशि की संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति को सूर्य के संक्रमण काल का त्योहार भी माना जाता है। एक जगह से दूसरी जगह जाने अथवा एक-दूसरे का मिलना ही संक्रांति होती है। सूर्य देव जब धनु राशि से मकर पर पहुंचता है तो मकर संक्रांति मनाते हैं। सूर्य देव पूर्व दिशा से उदित होकर 6 महीने दक्षिण दिशा की ओर से तथा 6 महीने उत्तर दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होते है। उत्तरायण का समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि होती है, वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है।
भाद्रपद या भादो के महीने में जब सूरज अपनी राशि परिवर्तन करते हैं, तो उस संक्रांति को सिंह संक्रांति कहा जाता है। दक्षिण भारत में इस संक्रांति को सिंह संक्रमण के नाम से भी जाना जाता है। सिंह संक्रांति के दिन भगवान विष्णु, सूर्य देव और भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इस दिन घी का सेवन लाभकारी माना जाता है। सिंह संक्रांति के दिन विधिवत पूजा पाठ किया जाता है।

सिंह संक्रांति तिथि:Singh Sankraanti Tithi

तिथि:  17 अगस्त, 2023

दिन : गुरुवार

सिंह संक्रांति पूजा विधि :Singh Sankraanti Pooja Vidhi

  • सिंह संक्रांति के दिन भगवान विष्णु, सूर्य देव और नरसिंह भगवान की पूजा की जाती है।
  • इस दिन भक्त पवित्र नदी में स्नान करने के लिए जाते हैं।
  • स्नान करने के बाद देवताओं का नारियल पानी और दूध से अभिषेक किया जाता है।
  • पूजा के लिए ताजा नारियल पानी प्रयोग किया जाता है।
  • इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है ।
  • सिंह संक्रांति के दिन पूजा करने के बाद गरीबों में दान पुण्य किया जाता है।

सिंह संक्रांति का महत्व: Singh Sankraanti Ka Mahatv

मान्यता है कि सिंह संक्रांति के दिन गाय का घी खाने का विशेष महत्व माना जाता है। घी स्मरण शक्ति, बुद्धि, ऊर्जा और ताकत बढ़ाता है। घी को वात, पित्त, बुखार और विषैले पदार्थों का नाशक माना जाता है। दूध से बने दही और उसे मथ कर तैयार किए गए मक्खन को धीमी आंच पर पिघलाकर घी तैयार किया जाता है। सिंह संक्रांति को घी संक्रांति (घीया संक्रांत) कहा जाता है। गढ़वाल में इसे आम भाषा में घीया संक्रांत कहा जाता है। उत्तराखंड में लगभग सिंह संक्रांति के दिन हर जगह घी खाना जरूरी माना जाता है।

सिंह संक्रांति मनाने का तरीका:Singh Sankraanti Manaane Ka Tareeka

सिंह संक्रांति के दिन कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। जिसमें दाल की भरवा रोटी, खीर, गाबा को प्रमुख माना जाता है। मान्यता है कि दाल की भरवा रोटी के साथ घी का सेवन किया जाता है। एक रोटी को बेटू रोटी भी कहा जाता है। उड़द की दाल पीसकर पीठा बनाया जाता है और उसे पकाकर घी से खाया जाता है। रोटी के साथ खाने के लिए अरबी नाम की सब्ज़ी के खिले पत्तों की सब्ज़ी बनायीं जाती है| इन पत्तों को ही गाबा कहा जाता है| इसके साथ ही समाज के अन्य वर्ग जैसे वास्तुकार, शिल्पकार, दस्तकार, लौहार, बढ़ाई अपने हाथ से बनी चीज़े भेंट स्वरुप लोगों को देते है और ईनाम प्राप्त करते है| अर्थात जो लोग कृषि व्यवसाय से नहीं भी जुड़े है वें लोग भी इस त्यौहार का हिस्सा होते है| भेंट देने की इस परंपरा को ओल्गी कहा जाता है इसलिए इस संक्रांति को ओल्गी संक्रांति भी कहते है|

सिंह संक्रांति के दिन घी खाने का महत्व:Singh Sankraanti Ke Din Ghee Khaane Ka Mahatv

सिंह संक्रांति के दिन घी खाने का बहुत महत्व बताया जाता है। सिंह संक्रांति के दिन घी का सेवन करने से ऊर्जा, तेज, यादाश्त और बुद्धि में वृद्धि होती है। इसके अलावा घी का सेवन करने से राहु और केतु के बुरे प्रभाव से बचा जा सकता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार जो व्यक्ति सिंह संक्रांति के दिन घी का सेवन नहीं करता है। वह अगले जन्म में घोंघा के रूप में जन्म लेता है।

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