पद्मिनी एकादशी:Padmini Ekadashi
हिन्दू धर्म में पद्मिनी एकादशी महत्वूपर्ण व्रत होता है। पूरे साल में 24 एकादशी होती है। परन्तु मलमास व पुरूषोत्तम मास में एकादशी बढ़कर 26 हो जाती है। मलमास या अधिकमास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते हैं यह एकादशी अत्यंत पुण्य दायिनी होती है। पद्मिनी एकादशी को पुरुषोत्तम एकादशी भी कहा जाता है। इसमें राधा कृष्ण तथा शिव पार्वती के पूजन का विधान है। पद्मिनी एकादशी लगभग 3 साल में एक बार आती है। द्मिनी एकादशी से पुत्री, कीर्ति, धन एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।पद्मिनी एकादशी तब आती है जब व्रत का महीना अधिक हो जाता है। इस बार अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 29 जुलाई शनिवार को इसका व्रत रखा जाएगा।
पद्मिनी एकादशी तिथि :Padmini Ekadashi Tithi
शनिवार, 29 जुलाई 2023
तिथि शुरू – 28 जुलाई 2023 दोपहर 02:52 बजे
तिथि समाप्त – 29 जुलाई 2023 दोपहर 01:06 बजे
पद्मिनी एकादशी पूजा:Padmini Ekadashi Puja
पद्मिनी एकादशी के दिन पूरे समर्पण के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए। भगवान विष्णु की एक छोटी मूर्ति पूजा स्थल पर रखी जाती है और भक्त भगवान को चंदन का लेप, तिल, फल, दीपक और धूप चढ़ाते हैं। इस दिन ’विष्णु सहस्त्रनाम’ और ’नारायण स्तोत्र’ का पाठ करना शुभ माना जाता है।द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और फिर फिर भोजन करें।
पद्मिनी एकादशी पौरणिक कथा:Padminee Ekaadashee Pauranik Katha
पद्मिनी एकादशी व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला विष्णु लोक को जाता है। पद्मिनी एकादशी भगवान को अति प्रिय है। श्री कृष्ण जी कहते हैं त्रेता युग में एक परम पराक्रमी राजा कीतृवीर्य था। इस राजा की कई रानियां थी परतु किसी भी रानी से राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। संतानहीन होने के कारण राजा और उनकी रानियां तमाम सुख सुविधाओं के बावजूद दु:खी रहते थे। संतान प्राप्ति की कामना से तब राजा अपनी रानियो के साथ तपस्या करने चल पड़े। हजारों वर्ष तक तपस्या करते हुए राजा की सिर्फ हडि्यां ही शेष रह गयी परंतु उनकी तपस्या सफल न रही। रानी ने तब देवी अनुसूिया से उपाय पूछा। देवी ने उन्हें मल मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा।
अनुसूिया ने रानी को व्रत का विधान भी बताया। रानी ने तब देवी अनुसूिया के बताये विधान के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा। व्रत की समाप्ति पर भगवान प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। रानी ने भगवान से कहा प्रभु आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे बदले मेरे पति को वरदान दीजिए। भगवान ने तब राजा से वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने भगवान से प्रार्थना की कि आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न हो जो तीनों लोकों में आदरणीय हो और आपके अतिरिक्त किसी से पराजित न हो। भगवान तथास्तु कह कर विदा हो गये। कुछ समय पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से जाना गया। कालान्तर में यह बालक अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ जिसने रावण को भी बंदी बना लिया था।